भाकृअनुप-आईआईओपीआर ने सफेद मक्खी प्रबंधन के लिए पर्यावरण-अनुकूल जैव-नियंत्रण में की अभूतपूर्व प्रगति

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रूगोज स्पाइरलिंग सफेद मक्खी के प्रबंधन हेतु जैव-नियंत्रण कारक के रूप में एक कीट-रोगजनक कवक, एस्परगिलस प्रजाति R55

रूगोज़ स्पाइरलिंग सफेद मक्खी (आरएसडब्लू), एलेरोडिकसरुगियोपरकुलैटसमार्टिन (हेमिप्टेरा: स्टर्नोरिंचा: एलेरोडिडे) को 2016 में आक्रामक सफेद मक्खी प्रजाति के रूप में भारत में प्रवेश के बाद से ही ऑयल पाम के एक संभावित कीट के रूप में स्थापित किया गया था। इस कीट के आक्रामक विस्तार एवं क्षति प्रभाव के कारण कीट प्रबंधन के हेतु अपरिहार्य रूप से हस्तक्षेप आवश्यक हो गया था।

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हालांकि, रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग, विदेशी प्रकृति के कारण, देशी प्राकृतिक बाधक के गतिविधि को रोकने के लिए सीमित है। इस समय, प्रभावी, पर्यावरण-अनुकूल तथा टिकाऊ कीट प्रबंधन केवल कीट-रोगजनकों के उपयोग से ही प्राप्त किया जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए, संशोधित कीट-चारा तकनीक का उपयोग करके तेल ताड़ पारिस्थितिकी तंत्र में आरएसडब्ल्यू के विरुद्ध देशी कीट-रोगजनकों की खोज का प्रयास किया गया। इस प्रयास से आरएसडब्ल्यू के विरुद्ध एक शक्तिशाली कीट-रोगजनक कवक, R55, की पहचान हुई। प्रयोगशाला स्थितियों में, यह पृथक्कृत आरएसडब्ल्यू की वयस्क अवस्थाओं के विरुद्ध अत्यधिक रोगजनक पाया गया, जिसकी 106 कोनिडिया/मिलीलीटर सांद्रता पर मृत्यु दर शत-प्रतिशत थी।

5 मिली/लीटर की सांद्रता पर अर्ध-क्षेत्रीय मूल्यांकन में, R55 ने नियंत्रण की तुलना में 94.74 प्रतिशत कीट न्यूनीकरण दिखा गया। दो-वर्षीय क्षेत्रीय मूल्यांकन में, पृथक्कृत ने 2022 तथा 2023 के दौरान क्रमशः 91% और 98.67% कीट न्यूनीकरण के साथ लगातार अच्छा प्रदर्शन किया। उच्च सापेक्ष आर्द्रता (RH) जैसी अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में, यह पृथक्कृत्कृत आरएसडब्ल्यू के वयस्कों में महामारीजन्य रोग उत्पन्न करने में सक्षम था। इस पृथक्ककरण ने कोनिडिया (109 कोनिडिया/मिलीलीटर) का पर्याप्त उत्पादन भी दिखाया, साथ ही तापमान सहनशीलता भी दिखाई, साथ ही एक घंटे तक 50º से.ग्रे. तापमान पर रहने के बाद कोनिडिया 50% से अधिक जीवित रहे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पृथक्क भाकृअनुप-आईआईओपीआर, पेडावेगी द्वारा विकसित द्वि-आयामी बड़े पैमाने पर उत्पादन तकनीक के लिए अत्यधिक अनुकूल है।

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शोध निष्कर्ष का संभावित प्रभावः

जैव नियंत्रण कारक R55, आंध्र प्रदेश के एलुरु, पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी जिलों के तेल ताड़ कृषक समुदाय के बीच पहले से ही लोकप्रिय था। अब तक, 39 लीटर एस्परगिलस प्रजाति R55 का उत्पादन किया गया है और कुल 44 किसानों को दिया गया है, जिससे कीटों की संख्या में सफलतापूर्वक कमी देखी गई है। R55 की यह मात्रा 1014 हैक्टर तेल ताड़ क्षेत्र में रगोज स्पाइरलिंग व्हाइटफ्लाई के प्रबंधन में सहायक है।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय तेल ताड़ अनुसंधान संस्थान, पेडावेगी, आंध्र प्रदेश)

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