28-30 अगस्त, 2025, कूच बिहार
भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्रों की वार्षिक क्षेत्रीय कार्यशाला 28-30 अगस्त, 2025 के दौरान कूचबिहार में सफलतापूर्वक आयोजित की गई, जिसका आयोजन भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता और यूबीकेवी-केवीके, कूचबिहार द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
कार्यशाला में पहली बार तीन रचनात्मक समाधान प्रयोगशालाएं शुरू की गईं, जिसमें (i) विस्तार अनुसंधान को मज़बूत करना, (ii) स्थिति-विशिष्ट प्रौद्योगिकी लक्ष्यीकरण, और (iii) डेटा गुणवत्ता में सुधार करना शामिल था। इन प्रयोगशालाओं में उत्पन्न नवीन अंतर्दृष्टि ने तीन समवर्ती तकनीकी सत्रों में विचार-विमर्श को निर्देशित किया, जिससे क्षेत्र-स्तरीय प्रभाव को और बेहतर बनाने के लिए कार्य योजनाओं को और बेहतर बनाने में मदद मिली।

अपने संदेश में, डॉ. राजबीर सिंह, उप-महानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप, ने विभिन्न मंत्रालयों के साथ केवीके गतिविधियों के अभिसरण की आवश्यकता पर बल दिया तथा देश भर में केवीके कर्मचारियों के कल्याण के लिए नई पहल की घोषणा की।
डॉ. आर.आर. बर्मन, सहायक महानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप, ने दलहन और तिलहन उत्पादन, परिशुद्ध खेती, जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों तथा एफपीओ/एफपीसी क्षमता निर्माण को उनकी मुख्यधारा की गतिविधियों में एकीकृत करके केवीके को देश की अग्रिम पंक्ति विस्तार प्रणाली के रूप में स्थापित करने का आग्रह किया।
प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों के विचार:
डॉ. डी. बसु, कुलपति, उत्तर बंग कृषि विश्वविद्यालय, ने खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में केवीके की भूमिका की सराहना की एवं प्राकृतिक खेती एवं परियोजना कार्यान्वयन में अटारी कोलकाता के योगदान की भी सराहना की।
डॉ. टी.के. दत्ता, कुलपति, पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, ने रेंडम सेंपलिंग नियंत्रण के माध्यम से परीक्षणों को व्यापक रूप से अपनाकर साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. प्रांजीब चक्रवर्ती, पूर्व सदस्य, कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड, ने कृषि-इनपुट नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और केवीके को इस परिवर्तन में अग्रणी बताया।
डॉ. एम.एम. अधिकारी, पूर्व कुलपति, बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, ने व्यापक पहुंच तथा प्रभाव के लिए केवीके को सशक्त बनाने हेतु अधिक वित्तीय सहायता के महत्व को रेखांकित किया।
डॉ. प्रदीप डे, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता, ने कृषि विज्ञान केन्द्रों की प्रमुख उपलब्धियों का विवरण प्रस्तुत किया और उन्हें विकसित भारत @2047 के दृष्टिकोण के अनुरूप उत्प्रेरक और अभिसरण केन्द्रों के रूप में परिवर्तित करने का आग्रह किया। उन्होंने ऐसे सतत-संचालित हस्तक्षेपों का आह्वान किया जो किसानों की समृद्धि और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करे।
डॉ. बी. दास, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर, ने निर्यात अवसरों का लाभ उठाने के लिए क्लस्टर आधारित लीची संवर्धन की वकालत की और वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत से 639.53 मीट्रिक टन लीची के निर्यात का अनुमान व्यक्त किया।
डॉ. जी.ए.के. कुमार, निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक, ने चावल की किस्मों के विकास में हुई नवीनतम प्रगति और स्थानीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल कृषि तकनीकों के बारे में जानकारी दी।
डॉ. एच.के. सेनापति, अध्यक्ष, राष्ट्रीय नवाचारों पर क्षेत्रीय निगरानी समिति, जलवायु अनुकूल कृषि, ने ग्रामीण परिवर्तन के लिए शिक्षा, अनुसंधान एवं विस्तार के भविष्य के लिए तैयार केन्द्रों के रूप में केवीके की उभरती भूमिका पर जोर दिया।

धानुका एग्रीटेक लिमिटेड द्वारा प्रायोजित कृषि-इनपुट और प्रौद्योगिकियों के सतत और सुरक्षित उपयोग पर एक विशेष सत्र में कृषि-रसायनों के सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग में सर्वोत्तम प्रथाओं पर प्रकाश डाला गया।
कार्यशाला में 21 प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया, जिनमें शिक्षण वीडियो और अटारी, कोलकाता तथा सहयोगी केवीके द्वारा विकसित केवीके प्रबंधन प्रणाली शामिल है। कुलपतियों, वरिष्ठ भाकृअनुप अधिकारियों, निदेशकों, डीईई, प्रमुखों और केवीके कर्मचारियों सहित 150 से अधिक प्रतिनिधियों की भागीदारी के साथ, यह कार्यक्रम ज्ञान साझा करने और सहयोगात्मक योजना बनाने के लिए एक जीवंत मंच बन गया।
कार्यशाला का समापन प्रौद्योगिकी एकीकरण, जलवायु लचीलापन, क्षमता निर्माण और बाजार संपर्कों पर दूरदर्शी सिफारिशों के साथ हुआ, जिससे पूरे क्षेत्र में सतत और समावेशी कृषि विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
कार्यशाला में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह (3), ओडिशा (33) और पश्चिम बंगाल (23) के 59 कृषि विज्ञान केन्द्रों ने भाग लिया, जिससे प्रगति की समीक्षा करने, अनुभव साझा करने तथा कृषि विस्तार को सुदृढ़ बनाने हेतु भविष्य की रणनीतियाँ तैयार करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच उपलब्ध हुआ।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता)
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