1 नवंबर 2025, चुरू, राजस्थान
भाकृअनुप–केन्द्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान, चेन्नई ने आज राजस्थान के चुरू जिले के राजगढ़ में झींगा उत्पादक किसान सम्मेलन का छठा एडिशन आयोजित किया। इस सम्मेलन का मकसद झींगा उत्पादक किसानों के साथ सीधा संपर्क बनाना, इलाके की खास चुनौतियों का समाधान करना तथा पश्चिमी भारत के खारे पानी के अंदरूनी इलाकों में टिकाऊ खारे पानी की खेती को बढ़ावा देना था।
चुरू के सांसद श्री राहुल कस्वां ने झींगा पालन के लिए चुरू में वृहत संभावनाओं पर ज़ोर दिया और झींगा पालन को एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस फ्रेमवर्क के तहत शामिल करने की मांग की। उन्होंने चुरू को भारत में झींगा उत्पादन का एक बड़ा सेंटर बनाने के लिए मिलकर कोशिश करने की अपील की।
डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप), ने राजस्थान में खारे पानी में मत्स्य पालन की अपार संभावनाओं पर रोशनी डाली तथा टिकाऊ झींगा पालन के लिए अवसंरचना एवं विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट के विकास पर ज़ोर दिया। उन्होंने खजूर तथा ड्रैगन फ्रूट जैसी ज़्यादा कीमत वाली बागवानी फसलों में विविधीकरण को भी बढ़ावा देने पर दिया, और झींगा पालन को कृषि पर्यटन पहल के साथ जोड़ने का सुझाव दिया। दिन में पहले, डॉ. जाट ने इलाके के एक झींगा उत्पादक फार्म का दौरा किया तथा फील्ड डेमोंस्ट्रेशन के दौरान किसानों से बातचीत की।

खास लोगों में, डॉ. जे.के. जेना, उप-महानिदेशक (मत्स्य पालन), भाकृअनुप; डॉ. राजबीर सिंह, उप-महानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप; नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड के, डॉ. एन.पी. साहू, चीफ एग्जीक्यूटिव, राष्ट्रीय मत्स्य पालन विकास बोर्ड; डॉ. कुलदीप के. लाल, निदेशक, भाकृअनुप-सीबा, के साथ-साथ राज्य के फिशरीज़ डिपार्टमेंट, स्थानीय प्रशासन के सीनियर अधिकारी और 200 से ज़्यादा किसान और स्टेकहोल्डर शामिल थे।
डॉ. जेना ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत का झींगा एक्सपोर्ट हर साल लगभग ₹46,000 करोड़ का होता है। उन्होंने कहा कि चूरू जैसे अंदरूनी इलाके, जहां तटीय इलाकों में होने वाली वायरल बीमारियों का खतरा कम होता है, बीमारी-मुक्त झींगा उत्पादन के लिए हब बन सकते हैं। उन्होंने किसानों को हेल्दी बीज खरीदने तथा सबसे अच्छे मैनेजमेंट के तरीके अपनाने की सलाह दी।
डॉ. राजबीर सिंह ने अंदरूनी इलाकों में झींगा पालन को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी ट्रेनिंग एवं कैपेसिटी-बिल्डिंग सेंटर के तौर पर कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) की भूमिका पर ज़ोर दिया।
आए हुए मेहमानों का स्वागत करते हुए, डॉ. कुलदीप के. लाल ने इंस्टीट्यूट के इलाके के हिसाब से झींगा उत्पादक किसान कॉन्क्लेव की सीरीज़ के बारे में विस्तार से बताया तथा राजस्थान के लिए की गई एक्वाकल्चर पोटेंशियल मैपिंग से मिली जानकारी साझा की। स्पेस टेक्नोलॉजी और ग्राउंड सर्वे का इस्तेमाल करके, सीबा ने सात जिलों में एक्वाकल्चर डेवलपमेंट के लिए सही 35,277 हैक्टर जमीन की पहचान की। उन्होंने वनामी प्लस टेक्नोलॉजी पर आधारित स्थानीय रूप से तैयार झींगा फ़ीड बनाने के लिए सहयोग पर भी ज़ोर दिया।
आए हुए मेहमानों ने झींगा पालन पर एक मैनुअल और ईएचपी सीयूआरए-I मोबाइल एप्लीकेशन (हिंदी में) जारी किया। बेनिफिशियरी श्रीमती स्मिता राजावत को एक इंश्योरेंस पॉलिसी दी गई, और छह प्रोग्रेसिव किसानों को ईएचपी सीयूआरए-I (5-लीटर के कैन) बांटा गया।

इनलैंड श्रिम्प फार्मिंग, खारे ग्राउंडवाटर का इस्तेमाल करने वाला एक अनोखा मत्स्य पालन व्यवस्था है, जो उत्तर-पश्चिमी भारत में एक बड़ी आर्थिक हिस्सेदार के तौर पर उभरा है। यह इलाका अभी लगभग 8,000 एकड़ के कमर्शियल श्रिम्प तालाबों को सपोर्ट करता है, जिससे हर साल लगभग 10,000 टन श्रिम्प पैदा होते हैं।
तकनीकी सेशन में नई जलजीव पालन तकनीकी, बीमारी का प्रबंधन, ईएचपी सीयूआरए-I के इस्तेमाल और भारत में नई शुरू की गई श्रिम्प क्रॉप इंश्योरेंस स्कीम पर एक्सपर्ट प्रेजेंटेशन दिए गए, जो एक नई पहल है। भाकृअनुप-सीबा के टेक्निकल सपोर्ट तथा पांच इंश्योरेंस कंपनियों के साथ पार्टनरशिप में बनाई गई यह इंश्योरेंस पॉलिसी अब श्रिम्प की बीमारियों के लिए कवरेज बढ़ाती है और इसे नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड (एनएफडीबॉ) का सपोर्ट मिला है।
भाकृअनुप-सीबा के इलाके के हिसाब से किसान कॉन्क्लेव रिसर्चर, पॉलिसी बनाने वालों और किसानों के बीच की दूरी को कम करने के लिए एक असरदार प्लेटफॉर्म बन गए हैं। ये इवेंट नई टेक्नोलॉजी को अपनाने को बढ़ावा देते हैं, किसानों में जागरूकता बढ़ाते हैं, और यह पक्का करते हैं कि ज़्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए सभी कम्युनिकेशन के साधन लोकल भाषाओं में उपलब्ध हों।
श्रिम्प फार्मर्स कॉन्क्लेव का 6वां एडिशन, भाकृअनुप-सीबा की सतत खारे पानी की जलजीव पालन को मज़बूत करने तथा अंदरूनी खारे पानी वाले इलाकों को वाइब्रेंट एक्वाकल्चर हब में बदलने की लगातार कोशिशों में एक और मील का पत्थर होने वाला है।
(स्रोत: भाकृअनुप–केन्द्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान, चेन्नई)







फेसबुक पर लाइक करें
यूट्यूब पर सदस्यता लें
X पर फॉलो करना X
इंस्टाग्राम पर लाइक करें