9 दिसंबर, 2025, कोलकाता
खेती को आधुनिक बनाने और कृषि-उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़े कदम के तहत, भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता के तहत हावड़ा कृषि विज्ञान केंद्र (बीसीकेवी) ने आज किसानों एवं ग्रामीण लोगों के लिए दो महत्वपूर्ण सुविधाएं: मशरूम स्पॉन के पहले बैच का वितरण और कम लागत वाली हाइड्रोपोनिक उत्पादन प्रणाली की शुरुआत की।
आत्मा प्रोजेक्ट के साथ मिलकर विकसित की गई कम लागत वाली हाइड्रोपोनिक यूनिट, किसानों, युवाओं और आम जनता के लिए हरी घास, पत्तेदार सब्जियां, ग्राफ्टेड बैंगन, शिमला मिर्च तथा अन्य ज़्यादा कीमत वाली फसलों की बिना मिट्टी के खेती का प्रदर्शन करती है। इसके साथ ही, खासकर महिला किसानों के लिए मशरूम स्पॉन की शुरुआत का मकसद विविधीकरण को बढ़ावा देना, उद्यमिता को बढ़ावा देना, पोषण सुरक्षा बढ़ाना और जिले में सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देना है।

इस मौके पर बोलते हुए, डॉ. प्रदीप डे, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी कोलकाता, ने कहा कि दोनों पहलें इस साल के विश्व मृदा दिवस की थीम के अनुरूप हैं और हावड़ा जैसे जिलों में शहरी-आसपास की खेती की उभरती ज़रूरतों को पूरा करती हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि ये नवाचार संसाधन-उपयोग दक्षता बढ़ाते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं, साथ ही स्थायी, एकीकृत मॉडल के माध्यम से किसानों की आय को मजबूत करते हैं। उद्यमिता आयाम पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि इस तरह के हस्तक्षेप ग्रामीण युवाओं के लिए आजीविका के नए रास्ते बनाते हैं और किसानों को प्रौद्योगिकी-संचालित, जलवायु-लचीला और बाजार-अनुकूल उद्यमी बनने में सक्षम बनाते हैं।
श्री जिंटू दास, निदेशक, जूट विकास निदेशालय, कोलकाता, ने भी इन पहलों की सराहना की और कहा कि हावड़ा केवीके की यह उपलब्धि क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देगी।

केवीके द्वारा व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने हेतु कम लागत वाले हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन मॉडल के प्रसार की योजना बनाई है, जिसे गांव स्तर पर उपयोग के लिए डिजाइन किया गया है। राज्य पशु संसाधन विकास विभाग ने भी हावड़ा जिले के बकरी पालकों के बीच इस मॉडल को बड़े पैमाने पर लागू करने का प्रस्ताव दिया है, जिससे साल भर किफायती हरे चारे तक पहुंच सुनिश्चित हो सके।
ये दोनों पहलें हावड़ा में अधिक लचीले, विविध एवं प्रौद्योगिकी-सक्षम कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता)







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