20 सितंबर, 2023, कोलकाता
भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता ने आज कृषि विज्ञान केन्द्र प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए एक संगोष्ठी श्रृंखला का आयोजन हाइब्रिड मोड में शुरू की गई। इस बैठक का उदघाटन, डॉ. हिमांशु पाठक, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप) द्वारा किया गया।
डॉ. पाठक ने अपने उद्घाटन संबोधन में वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों पर काबू पाने और अनुसंधान परिणामों को नवाचारों में बदलने के लिए बहु-संस्थागत और बहु-एजेंसी सहयोग से मानव संसाधन प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इस संगोष्ठी श्रृंखला के आयोजन के लिए अटारी, कोलकाता के प्रति गहरी संतुष्टि व्यक्त की। महानिदेशक ने कहा कि हमें अनुसंधान, विस्तार एवं सहयोग के कार्यान्वयन द्वारा प्रभावी योजना बनाने की जरूरत है जो किसानों के साथ सहयोग द्वारा कृषि विज्ञान केन्द्रों को भी सशक्त बनाएगी।
इस बैठक में, पहला व्याख्यान प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रोफेसर अरुण कुमार धर, निदेशक, एक्वाकल्चर (जलीय कृषि) पैथोलॉजी प्रयोगशाला, एरिज़ोना विश्वविद्यालय, टक्सन, एरिज़ोना, अमेरिका द्वारा "जलीय पशु स्वास्थ्य में सुधार करके जलीय कृषि स्थिरता को बढ़ाना" विषय पर दिया गया। उन्होंने बताया कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में तटीय संसाधन टिकाऊ मछली पकड़ने की प्रथाओं और जलीय कृषि के लिए बेहतर अवसर प्रदान करते हैं। प्रोफेसर धर ने बताया कि निर्यातोन्मुख मत्स्य विकास के लिए उन्नत नस्ल चयन, बेहतर पोषण और जैव सुरक्षा अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
डॉ. प्रदीप डे, संस्थान के निदेशक, संगोष्ठी श्रृंखला के संयोजक ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि हमें आशा है कि इन कार्यक्रमों के आयोजन से कृषि-नवाचार में अंतर-पीढ़ीगत सहयोग और रचनात्मकता की क्षमता का विकास होगा।
संगोष्ठी में उपस्थित केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, कोलकाता के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के प्रमुख, डॉ. तापस घोषाल, डॉ. सी. चट्टोपाध्याय, प्रभारी, केंद्रीय जूट एवं संबद्ध रेशे बीज अनुसंधान केंद्र, बुदबुद, डॉ. एस.के. मन्ना, प्रमुख, नदी और मुहाना मत्स्य प्रभाग, केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर और डॉ. मीनल सामंता, प्रमुख, मछली स्वास्थ्य प्रबंधन प्रभाग, केंद्रीय मीठाजल जिवपालन अनुसंधान संस्थान, भुवनेश्वर ने अपना विचार साझा किया।
(स्रोत : भाकृअनुप- कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता)
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