12 नवंबर, 2025, नई दिल्ली
श्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री ने पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के रजत जयंती वर्ष तथा 21वें स्थापना दिवस के अवसर पर उद्घाटित किया कि जब पश्चिमी राष्ट्रों का उदय नहीं हुआ था उस समय हिन्दुस्तान में कृषि मूल आधार था। उन्होंने कहा कि पहले किसान खुद बीज संरक्षित करते थे अगले सीजन की बुआई के लिए , लेकिन हाइब्रिड बीज के आने के बाद यह परंपरा खत्म हो गई उन्हें पुनः बहाल करना है साथ ही पुराने किस्मों का संरक्षण भी करना है।
श्री रामनाथ ठाकुर, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री, इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि प्रारम्भ में किसान खुद से बीज का संरक्षण सकते थे, समय के साथ यह कार्य वैज्ञानिकों के हाथ में आ गया। लेकिन अब समय आ गया है किसान द्वारा संरक्षित बीज को मान्यता प्रदान की जाए जिससे उसका लाभ सीधे किसान को मिले। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि प्राकृतिक खेती के विकास के लिए कार्य किया जाए और इसे व्यापक पैमाने पर अपनाया जाय।

श्री भागीरथ चौधरी, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि भारत जब विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य बना उस समय से ही बौद्धिक संपदा अधिकार एवं संरक्षण अधिकार पर कार्य करना प्रारंभ किया। श्री चौधरी ने कहा कि संरक्षण का सिर्फ आर्थिक महत्व नहीं है इसका महत्व पौधे किस्मों के संरक्षण से है ताकि वो विलुप्त न हो जाय। उन्होंने कहा कि पौधा संरक्षण को व्यापक आधार प्रदान करने के लिए ‘राज्य जीन निधि कानून’ को मूर्त रूप दिया गया है जिससे प्रदेश स्तर पर किसानों के बीज का संरक्षण कर उसे सम्मानित किया जाएगा।

डॉ. एम.एल जाट, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप), इस अवसर पर संबोधन के दौरान पीपीवीएफआरए को धन्यवाद दिया और कहा कि संस्थान अब तक दस हजार से ज्यादा किस्मों को संरक्षित तथा पंजीकृत कर चुका है जो एक उपलब्धि है। महानिदेशक ने कहा कि आज बायोडायवर्सिटी और सोयल हेत्थ कृषि के लिए महत्वपूर्ण विषय है जिस पर अब कार्य करने की जरूरत है। साथ ही माइक्रोव संरक्षण को भी इसमें शामिल किेये जाने की जरूरत है जिससे प्राकृतिक खेती और ऑर्गेनिक खेती को सपोर्ट मिले।
श्री देवेश चतुर्वेदी, सचिव, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय अपने वक्तव्य में उद्घाटित किया कि वर्ष 2014 से पहले सिर्फ एक सौ से दो सौ पौधा किस्म का पंजीकरण होता था लेकिन 2014 के बाद पंजीकरण की संख्या प्रति एक हजार से ऊपर पहुंच गई जो सरकार और संस्थान की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उन्होने कहा कि किसान द्वारा संरक्षित बीज का पंजीकरण इसलिए आवश्यक है कि भविष्य में इसका जीन लेकर कोई गलत तरीके से नई किस्मों का विकास न कर ले।
डॉ. त्रिलोचन महापात्रा, चेरपर्सन, पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण संस्थान, प्रारंभ में, स्वागत संबोधन दिया साथ ही उन्होने कहा कि हाल के दो तीन वर्षों में एक तिहाई से ज्यादा किस्मों का पंजीकरण हुआ जो सरकार के कुशल नेतृत्व को दर्शाता है।
इस अवसर पर सम्मानित अतिथिगण द्वारा प्लांट जीनोम सेवियर रिवार्ड 2022-23 के तहत 2 पुरस्कार, तथा प्लांट जीनोम सेवियर रिकग्निशन 2022-23 के तहत कुल 10 पुरस्कार तथा साईटेशन प्रदान कर सम्मानित किया गया।
(स्रोतः भाकृअनुप-कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय, नई दिल्ली)







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