एक महत्वपूर्ण कीटविज्ञान संबंधी सफलता में, डॉ. डी.एम. फिराके, वरिष्ठ वैज्ञानिक, भाकृअनुप-पुष्पकृषि अनुसंधान निदेशालय (भाकृअनुप-डीएफआर), पुणे के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने ब्लॉसम मिज की एक नई प्रजाति, कॉन्टारिनिया इकार्डिफ्लोरेस प्रजाति नोव, की खोज की है, जो भारत में जैस्मीनम साम्बक (चमेली) की फूलों की कलियों को नुकसान पहुंचा रही है। इस प्रजाति का नाम 'इकार्डिफ्लोरेस' भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - पुष्प कृषि अनुसंधान निदेशालय (भाकृअनुप-डीएफआर) है। इस प्रजाति का नाम भाकृअनुप-डीएफआर के सम्मान में रखा गया है, जो पुष्प कृषि अनुसंधान में संस्थान के योगदान को मान्यता देता है।

कॉन्टारिनिया वंश के ब्लॉसम मिज दुनिया भर में सजावटी और खाद्य फसलों के गंभीर कीट माने जाते हैं। नई खोजी गई प्रजाति, सी. इकार्डिफ्लोरेस, चमेली की खेती में भारी आर्थिक नुकसान का कारण पाई गई। हालाँकि यह प्रजाति, कॉन्टारिनिया मैकुलिपेनिस फेल्ट, जो पहले केवल चमेली पर आक्रमण करने वाला कीट बताया गया था, के आकारिकी रूप से समान है, फिर भी यह आनुवंशिक रूप से विशिष्ट है। शोध दल ने इस प्रजाति का वर्णन करने के लिए रूपात्मक विशेषताओं और आणविक उपकरणों, दोनों का उपयोग करते हुए एकीकृत वर्गीकरण का उपयोग किया। विशिष्ट विशेषताओं में मादा फ्लैजेलोमीयर, सेर्सी और नर एडिगस की संरचना शामिल है। अध्ययन में सटीक पहचान तथा त्वरित निदान के लिए माइटोकॉन्ड्रियल साइटोक्रोम ऑक्सीडेज सबयूनिट I (COI) जीन के एक आंशिक क्षेत्र का अनुक्रमण भी किया गया।
कॉन्टारिनिया इकार्डिफ्लोरेस अपना जीवन चक्र 16 से 21 दिनों में पूरा करता है और चमेली उत्पादन के लिए एक बड़ा खतरा है। ये निष्कर्ष आवश्यक जैविक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं और देश में चमेली किसानों के लिए लक्षित और पर्यावरण-अनुकूल कीट प्रबंधन रणनीतियों को विकसित करने का आधार तैयार करते हैं। यह खोज पुष्प-कृषि में उभरते कीटों के विरुद्ध भारत की तैयारी को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
(स्रोत: भाकृअनुप-पुष्प कृषि अनुसंधान निदेशालय, पुणे)
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