11 नवम्बर, 2016, कोयम्बटूर
भाकृअनुप – क्षेत्रीय समिति, क्षेत्र- 8 की 25वीं बैठक का उद्घाटन श्री आर. कमलाक्कन्नान, कृषि मंत्री, पुडुचेरी द्वारा भाकृअनुप – गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूर में किया गया। इस अवसर पर उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जल की कमी के बावजूद भी विभिन्न किसान भावनात्मक कारणों और चुनौतियों से निपटने की क्षमता की वजह से कृषि से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि पुडुचेरी में कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल वर्ष 2000-01 के 26,436 हैक्टर से घटकर वर्तमान में 15850 है. हो चुका है। मंत्री महोदय ने कहा कि ‘प्रति हैक्टर उत्पादकता’ की बजाय ‘उत्पादकता प्रति बूंद जल’ होनी चाहिए जैसा कि प्रो. स्वामीनाथन द्वारा कहा गया है।
पिछले वर्ष भाकृअनुप क्षेत्र – 8 के विभिन्न राज्यों में आई बाढ़ के कारण गन्ने के क्षेत्रफल में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह से किसान विकल्प के तौर पर कम पानी तथा कम अवधि वाली फसलों के बारे में सोचने को मजबूर हैं। इस विषय पर मंत्री महोदय ने कहा कि इन क्षेत्रों के अनुसंधान संस्थानों को बाढ़ सहिष्णु फसलों को चिन्हित करने का कार्य करना चाहिए।
मंत्री महोदय ने कहा कि इस क्षेत्र में हाल के दशकों में कृषि संबंधित गतिविधियों के अलावा, पशुपालन के क्षेत्र में पशु जनसंख्या में काफी कमी आई है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए फसल उत्पादन को पशुपालन के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। एक व्यापक जैविक कृषि पैकेज एकीकृत खेती के सभी घटकों के साथ किसान को दिया जाना चाहिए। उन्होंने अनुरोध किया कि इन क्षेत्रों के विभिन्न मुद्दों जैसे, कृषि यंत्रीकरण, फसल उपरांत प्रसंस्करण, अनाजों तथा बागवानी उत्पादों के भंडारण और मौसम से जुड़े कृषि बीमा आदि में परिषद की सहायता की आवश्यकता है।
डॉ. त्रिलोचन महापात्र, सचिव, डेयर एवं महानिदेशक, भाकृअनुप ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि भाकृअनुप, क्षेत्र- 8 में शामिल तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और लक्षद्वीप कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार के क्षेत्र में समृद्ध हैं। क्योंकि इन क्षेत्रों में 6 एसएयू, 3 पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय, 2 मात्स्यिकी विश्वविद्यालय, 1 बागवानी विश्वविद्यालय, 13 भाकृअनुप संस्थान, 79 केवीके तथा 7 एआईसीआरपी (मुख्यालय) स्थित हैं।
क्षेत्रीय समिति की बैठकें एनएआरएस (राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली) और राज्य विभागों के बीच बेहतर संबंधों की स्थापना के लिए मंच के रूप में कार्य करती हैं। इन बैठकों के माध्यम से राज्य कृषि विश्वविद्यालयों/ भाकृअनुप संस्थानों द्वारा अनुसंधान विषयों को चिन्हित करने के साथ ही विस्तार एजेंसियों द्वारा कृषि प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण में आने वाली बाधाओं को भी चिन्हित किया जाता है।
महानिदेशक महोदय ने कृषि विश्वविद्यालयों में आपसी समन्वय की कमी और विभिन्न निजी कृषि महाविद्यालयों की स्थापना पर चिंता व्यक्त की और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों द्वारा राजस्व बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. महापात्र ने विकास विभागों और विश्वविद्यालयों से आपसी संवाद स्थापित करने का आह्वान किया जिससे किसान की सेवा प्रभावी ढंग से की जा सके। उनका मानना है कि सबसे बड़ी संतुष्टि कृषक समुदाय की समस्याओं को सुलझाने से प्राप्त होती है।
डॉ. के. रामासामी, कुलपति, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने अपने संबोधन में देश में खेती के लिए प्रयोजन विशेष क्षेत्रों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कृषि क्षेत्रफल में गिरावट, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि योगदान में आयी कमी, कृषि में कम निवेश और कृषि उपज के लिए बुद्धिमतापूर्ण विपणन सुविधाओं के अभाव जैसे मुद्दों पर चिंता व्यक्त की। इसके साथ ही उन्होंने कृषि स्नातकों के सशक्तिकरण पर जोर दिया क्योंकि वे देश में एनएआरएस सुधार की सबसे बड़ी ताकत हैं।
डॉ. ए.के. सिंह, उपमहानिदेशक (कृषि विस्तार) ने अपने स्वागत भाषण में क्षेत्र में हुए हालिया विकास कार्यों के बारे में जानकारी दी। डॉ. सिंह ने क्षेत्र के अनुसंधान संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के सफल क्रियान्वयन के लिए संबंधित राज्य विभागों से सहयोग की मांग की।
डॉ. बक्शी राम, निदेशक, भाकृअनुप – गन्ना प्रजनन संस्थान एवं सदस्य सचिव, क्षेत्रीय समिति -8 ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
कार्यक्रम में कुलपतिगण, अनुसंधान निदेशक, शिक्षा विस्तार निदेशक और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के डीन, आईसीएआर संस्थानों के निदेशक, परियोजना समन्वयक, आईसीएआर क्षेत्रीय/अनुसंधान केन्द्रों के प्रमुख, पशुपालन, मत्स्य पालन तथा वानिकी क्षेत्र के कृषि विकास विभागों के अधिकारियों ने 150 की संख्या में भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप - गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूर)
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