15 सितंबर, 2025, नई दिल्ली
भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने एस.एम. सहगल फाउंडेशन (एसएमएसएफ), गुरुग्राम के सहयोग से आज "पुनर्योजी कृषि उत्पादन प्रणालियों में बेहतर उत्पादकता तथा संसाधन-उपयोग दक्षता हेतु उन्नत प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग" पर एक सहयोगात्मक परियोजना का औपचारिक शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम में प्रख्यात विशेषज्ञ और हितधारक एकत्रित हुए, जिन्होंने भारतीय कृषि के भविष्य तथा स्वचालन-सक्षम उप-सतही-ड्रिप फर्टिगेशन के संदर्भ में पुनर्योजी प्रौद्योगिकियों की भूमिका पर अपने दृष्टिकोण साझा किया।

पद्म भूषण डॉ. आर.एस. परोदा, अध्यक्ष, कृषि विज्ञान उन्नति ट्रस्ट और पूर्व सचिव, (डेयर) एवं महानिदेशक, (भाकृअनुप) ने मुख्य संबोधन दिया तथा पारंपरिक गहन कृषि से पुनर्योजी कृषि की ओर बढ़ने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आगाह किया कि प्रमुख आदानों, विशेष रूप से नाइट्रोजन तथा फास्फोरस उर्वरकों की कारक उत्पादकता में गिरावट आ रही है, जिससे भारतीय कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता को खतरा है। हरित क्रांति की सफलता पर विचार करते हुए, जिसने भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगली क्रांति में प्राकृतिक संसाधनों को पुनर्स्थापित करना तथा इनपुट-उपयोग दक्षता में सुधार करना आवश्यक है। अमेरिका की सोयाबीन-मक्का प्रणाली का उदाहरण देते हुए, डॉ. परोदा ने सुझाव दिया कि भारत को चावल-गेहूँ प्रणाली से हटकर सोयाबीन-गेहूँ या अरहर-गेहूँ जैसी वैकल्पिक फसलों की ओर रुख करना चाहिए, जो अधिक संसाधन-कुशल और टिकाऊ हैं।
डॉ. चेरुकमल्ली श्रीनिवास राव, निदेशक एवं कुलपति, भाकृअनुप-आईएआरआई (मानद विश्वविद्यालय), ने जलवायु परिवर्तन तथा जल संकट की दोहरी चुनौतियों पर ध्यान केन्द्रित किया और इन्हें आज भारतीय कृषि के लिए सबसे गंभीर मुद्दे बताया। उन्होंने संसाधन-उपयोग दक्षता बढ़ाने के महत्व पर प्रकाश डाला और उत्पादकता वृद्धि एवं पर्यावरणीय स्थिरता दोनों प्राप्त करने में मृदा कार्बन प्रबंधन की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने सामान्य रूप से सूक्ष्म सिंचाई और उपसतही ड्रिप फर्टिगेशन की भूमिका पर भी ज़ोर दिया, जिससे बहुमूल्य जल तथा उर्वरक संसाधनों की बचत होती है, साथ ही फसल की पैदावार एवं मृदा पर्यावरण में सुधार होता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है।

कार्यक्रम का समापन कृषि विज्ञान विभाग, अनुसंधान फार्म में परियोजना के औपचारिक शुभारंभ के साथ हुआ, जो एक ऐसी साझेदारी की शुरुआत है जिसका उद्देश्य भविष्य के लिए जलवायु-अनुकूल और संसाधन-कुशल कृषि उत्पादन प्रणालियाँ बनाना है।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली)
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