भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र ने 38वां स्थापना दिवस का किया आयोजन

भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र ने 38वां स्थापना दिवस का किया आयोजन

15 अक्टूबर, 2025, मेडजीफेमा, नागालैंड

भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र, मेडजीफेमा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के वैज्ञानिकों, किसानों तथा गणमान्य व्यक्तियों की भागीदारी और बड़े उत्साह के साथ अपना 38वां स्थापना दिवस मनाया।

इस समारोह में भाकृअनुप के पूर्व उप-महानिदेशक (पशु विज्ञान), असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट के पूर्व कुलपति तथा भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र के पूर्व निदेशक, डॉ. के. एम. बुजरबरुआ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

ICAR–NRC on Mithun Celebrates 38th Foundation Day

स्थापना दिवस व्याख्यान देते हुए, डॉ. बुजरबरुआ ने विकसित पशुधन के माध्यम से विकसित भारत 2047 के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को साकार करने में पशुधन, विशेष रूप से मिथुन के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जीनोमिक हस्तक्षेप जैसी अग्रणी तकनीकों का लाभ उठाकर एक मजबूत और आत्मनिर्भर पशुधन क्षेत्र बनाने का आह्वान किया जो आदिवासी और पहाड़ी समुदायों को सशक्त बनाए।

इस कार्यक्रम में डॉ. आशीष कुमार सामंत, सहायक महानिदेशक (पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान), भाकृअनुप, नई दिल्ली; डॉ. किशोर कुमार बरुआ, जीबी सदस्य, भाकृअनुप, नई दिल्ली; श्री मंजीत निडिंग, कार्यकारी सदस्य (पशु चिकित्सा विभाग), उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद, हाफलोंग, दीमा हसाओ, असम; और श्री थेनुचो तुन्यी, नागालैंड के पूर्व गृह मंत्री, विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

अपने स्वागत संबोधन में, डॉ. गिरीश पाटिल, एस., निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र  ने संस्थान की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा और क्षेत्र में मिथुन अनुसंधान, नस्ल सुधार तथा आजीविका विकास में इसके योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने मिथुन कृषि प्रणालियों की उत्पादकता एवं स्थिरता बढ़ाने के लिए विज्ञान, नवाचार और क्षेत्र-आधारित हस्तक्षेपों को एकीकृत करने के संस्थान के निरंतर प्रयासों पर जोर दिया।

ICAR–NRC on Mithun Celebrates 38th Foundation Day

इस अवसर पर, संस्थान के कई नए प्रकाशनों का विमोचन किया गया, जिनमें हालिया शोध उपलब्धियों और आउटरीच पहलों का विवरण दिया गया। इस कार्यक्रम में मिथुन पालन और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने में वैज्ञानिकों, कर्मचारियों और प्रगतिशील मिथुन किसानों के उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने के लिए पुरस्कार वितरण भी किया गया।

कार्यक्रम का समापन किसान-वैज्ञानिक संवाद सत्र के साथ हुआ, जिसमें विभिन्न राज्यों के शोधकर्ताओं और मिथुन किसानों के बीच सीधा संवाद संभव हुआ ताकि क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान किया जा सके और सहयोग के अवसरों का पता लगाया जा सके।

इस कार्यक्रम ने वैज्ञानिक नवाचार, सतत पशुधन विकास और पूर्वोत्तर भारत में आदिवासी समुदायों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के प्रति भाकृअनुप-एनआरसीएम की अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र, मेडजीफेमा)

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