12 सितंबर, 2025, पोर्ट ब्लेयर
भाकृअनुप-केन्द्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान को अपने नवीन आविष्कार 'मक्खी विकर्षक संरचना तथा उसके निर्माण की विधि' के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है।
मक्खियाँ मानव और पशु स्वास्थ्य दोनों के लिए एक बड़ा खतरा हैं क्योंकि वे यांत्रिक संचरण के माध्यम से या परजीवियों के मध्यवर्ती पोषक के रूप में विभिन्न रोगों के वाहक के रूप में कार्य करती हैं। वयस्क मक्खियां संक्रमण फैलाती हैं, जबकि उनके लार्वा माइआसिस का कारण बनते हैं, जिसे आमतौर पर मैगॉट घाव कहा जाता है। परंपरागत रूप से, मक्खियों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक तथा जैविक विधियों का उपयोग किया जाता रहा है।
इस चुनौती के जवाब में, भाकृअनुप-सीआईएआरआई के वैज्ञानिकों ने एक अनूठा मक्खी विकर्षक सूत्र विकसित किया है जो चुनिंदा रासायनिक यौगिकों को स्वदेशी घटकों के साथ मिश्रित करता है। उपयोग के लिए तैयार इस स्प्रे सूत्र में तीन रासायनिक यौगिक, एक गैर-विषैला कार्बनिक ध्रुवीय विलायक और आवश्यक तेल शामिल हैं, जो इसे मनुष्यों, पशुओं और पर्यावरण के लिए सुरक्षित बनाता है।
इस उत्पाद ने अत्यधिक प्रभावकारिता प्रदर्शित की है, यह मछली बाजारों तथा पशु शालाओं जैसे खुले स्थानों में चार घंटे तक और मिठाई की दुकानों, बेकरी और घरों जैसे बंद वातावरण में 24 घंटे तक घरेलू मक्खियों और मांस मक्खियों को दूर भगाता है।
दक्षिण अंडमान के महालसा एग्रो प्रोडक्ट्स के द्वीप उद्यमी श्री साईनाथ शेनॉय के साथ साझेदारी में इस तकनीक का सफलतापूर्वक व्यावसायीकरण किया गया है।
इस नवाचार के पीछे की शोध टीम में, डॉ. तलाविया हर्षंगकुमार, डॉ. अरुण कुमार डे, डॉ. डी. भट्टाचार्य, डॉ. पी. पेरुमल, डॉ. अभिलाष, डॉ. टी. सुजाता, डॉ. जय सुंदर और डॉ. ई. बी. चाकुरकर शामिल हैं।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पोर्ट ब्लेयर)
फेसबुक पर लाइक करें
यूट्यूब पर सदस्यता लें
X पर फॉलो करना X
इंस्टाग्राम पर लाइक करें