भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जलकृषि संस्थान ने भारतीय सुंदरबन स्थित अपने काकद्वीप अनुसंधान केन्द्र (केआरसी) में उच्च-मूल्यवान खारे पानी की सजावटी हरी पफर मछली (टेट्राडॉन फ्लूवियाटिलिस) का कैप्टिव स्पॉनिंग तथा बीज उत्पादन सफलतापूर्वक प्राप्त किया है। हरी पफर मछली सुंदरबन के खारे पानी के निकायों में पाई जाने वाली एक मूल्यवान सजावटी प्रजाति है और सजावटी मछली व्यापार में इसकी अत्यधिक मांग है। भाकृअनुप-सीबा, पश्चिम बंगाल के केआरसी में सजावटी मछली प्रजनन तथा संवर्धन पर भाकृअनुप की अखिल भारतीय नेटवर्क परियोजना के अंतर्गत ब्रूडस्टॉक विकास एवं परिपक्वता परीक्षण किया गया।

अक्टूबर 2023 और जनवरी 2024 के बीच आस-पास के खारे पानी के निकायों से ब्रूडफ़िश (शारीरिक भार: 50 से 300 ग्राम) एकत्र की गई। इन्हें केआरसी, भाकृअनुप-सीबा स्थित एक पिंजरा आधारित पालन केन्द्र में रखा गया। जून 2025 में, मछलियों को एक पुनःपरिसंचारी जलीय कृषि प्रणाली (आरएएस) में उच्च लवणता स्तर (20 पीपीटी) के अनुकूल बनाया गया। जून-जुलाई, 2025 के दौरान नर में दूध की अभिव्यक्ति और मादा में परिपक्व अंडाणुओं की उपस्थिति दर्ज की गई। परिपक्व मादाओं और नरों को युग्मन के लिए चुना गया। मादाओं को एलएचआरएचए (खुराक: 70 माइक्रोग्राम/किग्रा शारीरिक भार) दिया गया, जबकि नरों को 50 माइक्रोग्राम/किग्रा शारीरिक भार दिया गया। 20 पीपीटी लवणता पर 72 घंटे बाद अंडोत्सर्ग हुआ। प्रत्येक मादा ने 50,000 से 1.2 लाख अंडे दिए। निषेचित अंडे, जिसका व्यास 690-720 माइक्रोमीटर था, तलमज्जी, पारभासी थे और उनमें तेल की असंख्य बूंदें थीं।

निषेचन के 80 घंटे बाद (एचपीएफ) अंडों से बच्चे निकलना शुरू हुए और 100 एचपीएफ तक जारी रहे। नवजात लार्वा की लंबाई 2.0-2.1 मिमी थी। अंडों से निकलने के 40 घंटे बाद मुंह खुलना देखा गया, और अंडों से निकलने के 2 दिन बाद (डीपीएच) रोटिफ़र्स (ब्राचियोनस प्लिकैटिलिस) के साथ बाह्य आहार देना शुरू किया गया, जो 12 डीपीएच तक जारी रहा। 40 दिनों के इनडोर नर्सरी पालन के बाद लार्वा 2.0 सेमी के बाजार योग्य आकार तक पहुँच गए, जिससे स्थानीय सजावटी मछली व्यापार में प्रति टुकड़ा ₹20-30 की कीमत प्राप्त हुई।

यह सफलता खारे पानी की परिस्थितियों में टी. फ्लुवियाटिलिस के आरएएस-आधारित बीज उत्पादन में एक मील का पत्थर साबित हुआ है साथ ही सजावटी हैचरी संचालकों तथा जलीय कृषि के शौकीनों के लिए नए अवसर प्रदान करती है।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जल जलीय कृषि संस्थान, चेन्नई)
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