10 अगस्त, 2025, चेन्नई
विकसित कृषि संकल्प अभियान के अनुवर्ती के रूप में, भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जलकृषि संस्थान (सीबा) ने झींगा पालन में होने वाली मौतों की समस्या से निपटने के लिए शोधकर्ताओं और प्राण किसान संघ (पीएफएफआई) को एक साथ लाकर एक अभिनव, समस्या-समाधान अनुसंधान मॉडल पेश किया है।
नागापट्टिनम में झींगा पालन मुख्यतः साझा जल निकायों के किनारे किया जाता है, जहां जल जनित रोगाणु खेतों में तेज़ी से फैलते हैं। इसलिए, प्रभावी रोग निवारण के लिए सभी किसानों द्वारा बेहतर प्रबंधन पद्धतियों (बीएमपी) को सामूहिक रूप से अपनाना महत्वपूर्ण है। इसे ध्यान में रखते हुए, भाकृअनुप-सीआईबीए ने एक सहयोगात्मक पहल शुरू की है जहां वैज्ञानिक और किसान संघ झींगा फसल की विफलता के मूल कारणों की पहचान करने और स्थायी समाधान तैयार करने के लिए मिलकर काम करते हैं।

इस मॉडल के तहत, किसान संघ क्षेत्रीय निगरानी का समन्वय करेगा और रोग प्रकोप के इतिहास वाले वैज्ञानिक रूप से पहचाने गए तालाबों से पानी और झींगा के नमूने एकत्र करने में सहायता करेगा। इन नमूनों का विश्लेषण भाकृअनुप-सीबा के वैज्ञानिकों द्वारा किया जाएगा, जो एक या दो फसल चक्रों के लिए खेतों की निगरानी करेंगे। इसके परिणामों से फसल मृत्यु दर के वास्तविक कारणों और उनके प्रबंधन हेतु व्यावहारिक रणनीतियों के बारे में प्रमाण-आधारित जानकारी मिलने की उम्मीद है।
इस अवसर पर बोलते हुए, डॉ. कुलदीप के. लाल, निदेशक, भाकृअनुप-सीबा ने झींगा पालन में रोगों से होने वाले गंभीर आर्थिक नुकसान पर प्रकाश डाला और सीबा के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित फाइटो-बायोटिक उत्पाद 'सीबा ईएचपी क्यूरा' का परिचय दिया। झींगा रोगों के विरुद्ध रोगनिरोधी और उपचारात्मक दोनों सिद्ध इस उत्पाद का नागपट्टिनम में सत्यापन किया गया था और अब इसे और उन्नत करके 'सीबा ईएचपी क्यूरा ग्रो+' बना दिया गया है। डॉ. लाल ने उन्नत उत्पाद को आधिकारिक तौर पर किसान समूहों को सौंपा और उनसे प्रभावी रोग प्रबंधन के लिए इसे अपनाने का आग्रह किया।
श्री बालासुब्रमण्यम, महासचिव, पीएफएफआई ने परियोजना की सहयोगात्मक प्रकृति और सरकारी एजेंसियों व निजी भागीदारों सहित विभिन्न हितधारकों की भागीदारी पर ज़ोर दिया। उन्होंने इस पहल की सफलता के लिए किसानों के सहयोग और सामूहिक अनुपालन के महत्व पर ज़ोर दिया।

किसानों की क्षमता निर्माण के लिए, भाकृअनुप-सीबा ने एंटरोसाइटोजून हेपेटोपेनाई (ईएचपी) और व्हाइट फीसेस सिंड्रोम (डब्ल्यूएफएस) के कारण होने वाले हेपेटो पैनक्रिएटिक माइक्रोस्पोरिडिओसिस (एचपीएम) जैसे झींगा रोगों के प्रभावी प्रबंधन पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) द्वारा समर्थित इस कार्यक्रम में लगभग 130 किसानों ने भाग लिया।
विशेषज्ञों ने ईएचपी और डब्ल्यूएफएस के लिए प्रबंधन रणनीतियों पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी, जिसमें सीबा ईएचपी क्यूरा के क्षेत्रीय प्रदर्शन आंकड़ों तथा सीबा ईएचपी क्यूरा ग्रो+ के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जलकृषि संस्थान, चेन्नई)
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