प्राकृतिक एवं जैविक खेती पर 115वां एफओसीएआरएस संवाद सत्र आयोजित

प्राकृतिक एवं जैविक खेती पर 115वां एफओसीएआरएस संवाद सत्र आयोजित

23 अगस्त, 2025, हैदराबाद

भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी, राजेन्द्रनगर, हैदराबाद ने आज कृषि अनुसंधान सेवा (एफओसीएआरएस) के लिए चल रहे 115वें आधारभूत पाठ्यक्रम के अंतर्गत "प्राकृतिक एवं जैविक खेती: विशेषज्ञों एवं कार्यरत किसानों द्वारा संवाद एवं अनुभव साझाकरण" विषय पर एक संवाद सत्र का आयोजन किया। इस सत्र का उद्देश्य युवा कृषि अनुसंधान संस्थान (एआरएस) परिवीक्षार्थियों को सतत कृषि अवधारणाओं, कृषक नवाचारों एवं प्रक्षेत्र-स्तरीय अनुभवों से परिचित कराना था।

अपने उद्घाटन संबोधन में, डॉ. गोपाल लाल, निदेशक, भाकृअनुप-एनएएआरएम ने खाद्य गुणवत्ता सुनिश्चित करने, पर्यावरणीय क्षरण से निपटने तथा मृदा स्वास्थ्य को बहाल करने में प्राकृतिक एवं जैविक खेती की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सतत कृषि प्रणालियाँ न केवल दीर्घकालिक मृदा उर्वरता बनाए रखने के लिए, बल्कि भावी पीढ़ियों के पोषण संबंधी कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक हैं। मानव और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग के हानिकारक परिणामों पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने युवा वैज्ञानिकों से स्थानीय रूप से अनुकूल प्राकृतिक और जैविक कृषि मॉडल विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित करने का आग्रह किया।

115th FoCARS Interaction Session on Natural and Organic Farming Organised

मुख्य सत्र के वक्ता, श्री यदलापल्ली वेंकटेश्वर राव, संस्थापक, रायथुनेस्थम तथा पद्मश्री पुरस्कार विजेता ने रायथुनेस्थम पत्रिका और फाउंडेशन की स्थापना की अपनी प्रेरक यात्रा को साझा किया। श्री राव ने किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं से व्यथित होकर, किसान कल्याण एवं टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किया हैं। उन्होंने मिट्टी, जैव विविधता तथा मानव स्वास्थ्य पर अत्यधिक उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की, साथ ही पालेकर की शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) सहित प्राकृतिक कृषि पद्धतियों पर किसानों और ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित करने में फाउंडेशन की पहलों का भी प्रदर्शन किया। उन्होंने प्राकृतिक कृषि प्रणालियों को मजबूत करने तथा किसानों की आय में सुधार के लिए विविधीकरण, मूल्य संवर्धन, बाजरा-आधारित आहार, छत पर बागवानी एवं ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीकों के उपयोग के महत्व पर भी जोर दिया।

इस सत्र में सक्रिय भागीदारी और रोचक चर्चाएं हुईं, जिससे एआरएस परिवीक्षार्थियों को पारंपरिक ज्ञान, किसान-आधारित नवाचारों एवं टिकाऊ कृषि को आगे बढ़ाने हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान के बीच तालमेल के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली।

(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी, हैदराबाद)

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