13 दिसंबर, 2022, बीकानेर
अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (आईएलआरआई), नई दिल्ली के सहयोग से आज भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर में हाइब्रिड मोड में "गधे और गैर-गोजातीय पशु के दूध में सुधार" पर हितधारकों की बैठक आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में विभिन्न समूहों के हितधारकों जैसे - शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, नीति नियोजकों, गैर-सरकारी संगठनों, उद्यमियों और गधों तथा गैर-गोजातीय दूध के सुधार में लगे किसानों ने भाग लिया।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता, डॉ. एच. रहमान, दक्षिण-एशिया के लिए आईएलआरआई के क्षेत्रीय प्रतिनिधि के साथ प्रो. (कर्नल) ए.के. गहलोत, सदस्य-राज्यपाल सलाहकार बोर्ड, राजस्थान; प्रो. सतीश के. गर्ग, कुलपति, आरएजेयूवीएएसॉ, बीकानेर; डॉ. टी.के. भट्टाचार्य, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र और डॉ. ए. साहू, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र शामिल थे।


डॉ. एच. रहमान ने कहा कि गधा परियोजनाओं से प्राप्त निष्कर्ष और विभिन्न हितधारकों से संग्रहित जानकारी के अनुसार गधे और गधे के मालिकों के कल्याण में सुधार के लिए आवश्यक दिशा निर्देश और व्यवहारिक रणनीति विकसित करने के लिए इस पर विमर्श किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आईएलआरआई सामाजिक-आर्थिक उत्थान और गधे और अन्य गैर-गोजातीय प्रजातियों में शामिल आबादी के भरण-पोषण के लिए भाकृअनुप और अन्य समूहों के साथ मिलकर काम करना जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि आईएलआरआई जल्द ही राजस्थान के शुष्क क्षेत्र के छोटे जुगाली करने वाले पशु और ऊंटों को शामिल करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू करेगा।
प्रो. कर्नल डॉ. ए.के. गहलोत ने गधों पर भार ढोने के लिए उपयुक्त पैक के डिजाइन विकसित करने, गधों के मालिकों की भोजन उपलब्धता और आजीविका सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने विभिन्न उत्पादों के विकास और दूध विपणन के लिए नवाचार मंच का गठन करके गैर-गोजातीय दुग्ध बाजार में विविधता लाने की आवश्यकता भी व्यक्त की।
प्रो. सतीश के. गर्ग ने दोहराया कि गधा किसानों और गैर-गोजातीय दुग्ध उत्पादकों के आर्थिक लाभ को अधिकतम करने के प्रयास जारी है।
डॉ. टी.के. भट्टाचार्य ने राजस्थान के गधों की आबादी को चिह्नित करने और गधी के दूध के विपणन मूल्य-श्रृंखला को गति देने के लिए गधी के दूध की एफएसएसएआई की मंजूरी में तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
डॉ. ए. साहू ने दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में भारत में ऊंट और गधों की घटती आबादी पर चिंता व्यक्त की, और कहा कैसे इस गिरावट को विभिन्न व्यवहारिक प्रयासों से रोका जा सकता है, इसके लिए ड्राफ्ट से लेकर डेयरी तक इसके उपयोग को फिर से शुरू करना तथा गैर-गोजातीय दुग्ध व्यापार और निर्यात के लिए नीतिगत बदलाव तथा नियामक ढांचे का विकास करने की जरूरत है।
इसके लिए योजनाकारों, नीति-धारकों और अनुसंधान समूहों को मानव चिकित्सा विज्ञान में इसके उपयोग को प्रमाणित करने, संग्रह, प्रसंस्करण और विपणन में शामिल बाधाओं और भारत और विदेशों में विपणन की सुविधा के लिए नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए आगे का रास्ता और महत्वपूर्ण सिफारिशें सुझाई गईं।
(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर)







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