3 जुलाई 2025, चेन्नई
भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जलकृषि संस्थान ने अपनी स्वदेशी तकनीक, सीबा ईएचपी क्यूरा ग्रो प्लस, के हस्तांतरण हेतु मेसर्स वी.के. एक्वा फीड्स, आंध्र प्रदेश के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
यह फाइटोबायोटिक-आधारित सूत्रीकरण एंटरोसाइटोजून हेपेटोपेनाई (ईएचपी) के नियंत्रण और उपचार के लिए विकसित किया गया है, जो एक माइक्रो स्पेरिडियन परजीवी है जो झींगा जलकृषि में महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान के लिए जिम्मेदार है। ईएचपी एक प्रमुख रोग के रूप में उभरा है, जिससे भारत में झींगा पालन उद्योग को अनुमानित ₹4,000 करोड़ का वार्षिक नुकसान होता है।

सात वर्षों के समर्पित शोध के बाद, भाकृअनुप-सीबा के वैज्ञानिकों ने ईएचपी संक्रमणों के प्रभावी प्रबंधन हेतु सीबा ईएचपी क्यूरा ग्रो प्लस तैयार किया है। इस उत्पाद का तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब तथा गुजरात के झींगा फार्मों में व्यापक क्षेत्रीय सत्यापन किया गया है। परीक्षण के परिणामों से पता चला है कि यह उत्पाद ईएचपी प्रसार को महत्वपूर्ण रूप से रोकता है, विब्रियो जीवाणु भार को कम करता है, और झींगा की प्रतिरक्षा, उत्तरजीविता, स्वास्थ्य और वृद्धि में सुधार करता है।
हस्ताक्षर समारोह के दौरान, डॉ. कुलदीप के. लाल, निदेशक, भाकृअनुप-सीबा ने झींगा जलीय कृषि में ईएचपी और अन्य रोगों से उत्पन्न बढ़ती चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस नवाचार के महत्व और वास्तविक कृषि परिस्थितियों में इसके आशाजनक प्रदर्शन पर जोर दिया।

यह समझौता ज्ञापन जलीय कृषि उद्योग में अनुसंधान-आधारित समाधान लाने तथा रणनीतिक उद्योग सहयोग के माध्यम से स्थायी झींगा पालन प्रथाओं को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय खारे पानी जलीय कृषि संस्थान, चेन्नई)
फेसबुक पर लाइक करें
यूट्यूब पर सदस्यता लें
X पर फॉलो करना X
इंस्टाग्राम पर लाइक करें