जलवायु-स्मार्ट आजीविका और पोषण सुरक्षा के लिए फसल सघनता प्रणाली (आईसीएससीआई - 2022) पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित

जलवायु-स्मार्ट आजीविका और पोषण सुरक्षा के लिए फसल सघनता प्रणाली (आईसीएससीआई - 2022) पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित

12-14 दिसंबर, 2022, हैदराबाद

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन की समितियों के परामर्श से, भाकृअनुप-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च (भाकृअनुप-आईआईआरआर) और कई भाकृअनुप संस्थानों के सहयोग से सोसाइटी फॉर एडवांसमेंट ऑफ राइस रिसर्च (एसएआरआर) ने फसल गहनता की प्रणाली (आईसीएससीआई 2022) द्वारा जलवायु - स्मार्ट आजीविका और पोषण सुरक्षा (https://www.sarr.co.in/icsci2022) के लिए भाकृअनुप-आईआईआरआर, हैदराबाद में 12-14 दिसंबर, 2022 के दौरान हाइब्रिड मोड में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

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उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष, डॉ. हिमांशु पाठक, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप), नई दिल्ली ने टिकाऊ चावल उत्पादन में मिट्टी की गुणवत्ता में कमी और ग्रीनहाउस गैसों के मुद्दों जैसी कई चुनौतियों का उल्लेख किया और कहा कि एसआरआई और एससीआई जैसी प्रौद्योगिकियां इनमें से कई मुद्दों का समाधान कर सकती हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि प्रौद्योगिकी को उन्नत करने के लिए एससीआई के स्थान विशिष्ट संशोधन की आवश्यकता है।

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डॉ. एस.के. प्रधान, सहायक महानिदेशक (एफएफसी) इस सत्र के सह-अध्यक्ष तथा डॉ. अलापति सत्यनारायण, पूर्व निदेशक, एएनजीआरएयू, उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

सम्मानित अतिथियों में, डॉ. डी.के. यादव, सहायक महानिदेशक (बीज), भाकृअनुप; डॉ. ए.के. सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-आईएआरआई; डॉ. आर. जगदीश्वर, अनुसंधान निदेशक, पीजेटीएसएयू; डॉ. फ्रांसेस्को कार्नेवाले ज़म्पाओलो, कार्यक्रम निदेशक, एसआरआई - 2030, यूके; डॉ. आभा मिश्रा, पूर्व निदेशक, एसीएसएआई, थाईलैंड शामिल थे।

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के दौरान कई प्रकाशन भी जारी किए गए।

इस कार्यक्रम में, सोसाइटी फॉर द एडवांसमेंट ऑफ राइस रिसर्च (एसएआरआर) द्वारा स्थापित सात पुरस्कारों भी प्रदान किए गए।

16 देशों के कुल 209 प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया जिनमें, यूएसए, यूके, फिलीपींस, जर्मनी, इटली, न्यूजीलैंड, नीदरलैंड, जापान, ईरान, नेपाल, बांग्लादेश, वियतनाम, तंजानिया और भारत शामिल हैं।

इसके अतिरिक्त, लगभग 150 किसानों ने भी पंजीकरण कराया और आईसीएससीआई - 2022 में भाग लिया।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद)

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